बेहतरीन प्रेम कविताएं
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मैंने कहा वो अजनबी है ।
दिल ने कहा फिर भी अपना है ।। मैंने कहा वो दो पल की मुलाकात है ।
दिल ने कहा ये दिल की लगी है ।। मैंने कहा वो सपना है । दिल ने कहा ये सदियों का साथ है ।। मैंने कहा वो मेरी भूल है । दिल ने कहा फिर भी कबूल है ।। मैंने कहा वो मेरी हार है ।
दिल ने कहा यही तो प्यार है ।।
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अब जरूरी हो गया है। अपनी कीमत बताई जाए।
जो कर रहे हैं नजरंदाज । उन्हे अपनी मौजूदगी दिखाई जाए।
भूल चुके हैं जो अपनी हदें । उन्हे अपनी हदों का एहसास करवाया जाए।
मेरी मजबूरी को समझ रहे हैं। जो कमजोरी । उन्हें असलियत से । रूबरू करवाया जाए। #अनुराज
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लोग जल जाते हैं मेरी मुस्कान पर क्योंकि, मैंने कभी दर्द की नुमाइश नहीं की,
जिंदगी से जो मिला कबूल किया, किसी चीज की फरमाइश नहीं की,
मुश्किल है समझ पाना मुझे क्योंकि, जीने के अलग है अंदाज मेरे, जब जहां जो मिला अपना लिया, जो ना मिला उसकी ख्वाहिश नहीं की।
माना कि औरो के मुकाबले कुछ ज्यादा पाया नहीं मैंने पर खुश हूं की खुद को गिरा कर कुछ उठाया नहीं मैंने !
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एक चेहरा जो मेरे ख़्वाब सजा देता है। मुझे खुश रहने की वजह देता है .....
वो मेरा कौन है, मालूम नहीं लेकिन जब भी मिलता है, पहलू में जगह देता है .....
मैं जो कभी अन्दर से टूट कर बिखरूं वो मुझे थामने के लिए हाथ बढ़ा देता है...
मैं जो तन्हा कभी चुपके से रोना भी चाहूं वो दिल का दरवाज़ा खटखटा देता है......
उसकी बातों में जाने कैसा जादू है। एक ही पल में सदिया भुला देता है..
Antim Unchai Kavita
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एक शब्द है मोहब्बत
इसे कर के देखो तुम
तड़प ना जाओ तो कहना,
एक शब्द है (मुकद्दर )
इससे लड़कर देखो तुम हार ना जाओ तो कहना,
एक शब्द है (वफा )
जमाने में नहीं मिलती
कहीं ढूंढ पाओ तो कहना,
एक शब्द है (आँसू )
दिल में छुपा कर रखो तुम्हारी
आँखों से ना निकल जाए तो कहना,
एक शब्द है ( जुदाई )
इसे सह कर तो देखो तुम टूट कर बिखर
ना जाओ तो कहना, एक शब्द है (ईश्वर)
इसे पुकार कर तो देखो सब कुछ पा ना लो तो कहना
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कितना सुंदर लिखा है किसी ने।
प्यास लगी थी गजब की... मगर पानी मे जहर था...
पीते तो मर जाते और ना पीते तो भी मर जाते... बस यही दो मसले, जिंदगीभर ना हल हुए ! !
ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए!!! वक़्त ने कहा.....काश थोड़ा और सब्र होता! !! संब्र ने कहा....काश थोड़ा और वक़्त होता !!
"शिकायते तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्दगी, पर चुप इसलिये हु कि, जो दिया तूने, वो भी बहुतो को नसीब नहीं होता....
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कहने को तो हम इंसान है......
पर इस जीवन में कभी कभी.....
हमें यहां पत्थर भी बन जाना पड़ता है !
भावुक होना भी ठीक नहीं है.....
इसीलिए तो इस जीवन में हमे......
कभी कभी भावविहीन भी हो जाना पड़ता है !
जिंदगी है तो जिंदा भी रहना है.... पर ना जाने कितनी बार इस जीवन में......
हमको यहां जीते जी भी तो मर जाना पड़ता है !
इस जिंदगी के खेल भी निराले है.....
अक्सर यहां खेलती तो है जिंदगी पर .....
जीवन का हर किरदार तो हमें ही निभाना पड़ता है !
क्या कहें और क्या ना कहें.....
यह भी तो अजब सी उलझन है......
ना चाहते हुए भी कई बार हमें चुप रह जाना पड़ता है !
इस जीवन की माया तो "राही".
बस यहां "वो" ऊपर वाला ही जानता है...
"बंदों को तो यहां बस उसकी मर्जी से ही जीना पड़ता है /
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रिश्तों में वैसा ही संबंध होना चाहिए .....
जैसे हाथ और आँख का होता है ।
हाथ पर चोट लगती है.. तो आँखों से आँसू निकलते हैं और
आँसू आने पर हाथ ही उनको साफ करता है....!!
Kavita Bhejiye Kavita
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एक काम करना, थोड़ी सी मिट्टी लेना, उससे दो प्यारे से दोस्त बनाना
एक तुझ जैसा एक मुझ जैसा.. फिर उनको तुम तोड़ देना.
उनसे फिर दुबारा दो दोस्त बनाना.. एक तुझ जैसा एक मुझ जैसा..
ताकि तुझ में कुछ-कुछ मैं रह जाऊं और मुझ में कुछ-कुछ तुम रह जाओ।
कुछ तुम जैसा... कुछ मुझ जैसा..
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तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे....
तुम्हारे बस में अगर हो तो भूल जाओ मुझे तुम्हें भुलाने में शायद मुझे ज़माने लगे...
जो डूबना है तो इतने सुकून से डूबो "की आस-पास की लहरों को भी पता न लगे....
वो फूल जो मेरे दामन से हो गए मंसूब खुदा करे उन्हें बाजार की हवा न लगे...
न जाने क्या है किसी की उदास आंखों में वो मुँह छुपा के जाए तो भी बेवफ़ा न लगे...
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इस जीवन में .
जिंदगी के बदले हुए स्वरूप को सभी
को स्वीकार करना ही पड़ता है
और यहां जो यह समझ नही पाया उन्हें जीवन भर भटकना ही पड़ता है !
प्रकृति भी तो नियम से ही चलती है ...
जब बदलता है दिन तो बदलती है रातें
गर्मी हो या सर्दी बसंत हो या बरसाते .....
मौसम भी तो सदा एक से नही रह पाते !
जाने वाले को यहां कौन रोक पाया है..
क्या पता हमारा इतना ही नाता हो उस से
किस्मत में होगा तो वह खुद लौट आएगा. वरना कुछ भी नही होता फिर मिन्नतों से
क्या मिलना है यह तो उस रब की है मर्जी जो मिलना है वो खुद आकर मिलेगा हमसे तो इस जीवन में जो भी मिला है हमको. क्यों ना राही " हम उसको अपनाएं खुशी से
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"दुआ के कई रंग है, धागों की तरह..जो धागे सिर्फ
अपनी ख्वाहिशों की मांग के रंग मे रंगे होते है,
उन धागो से काढ़ी हुई दुआ के रंग मुख्तलिफ़ होते है लेकिन जिन धागो पर
रब की मुहब्बत का रंग चढ़ा होता है, उससे काढ़ी हुई दुआ की खुशबू और आती है
दुआ की छाँव मे बैठकर सिर्फ़ रब से कुछ मांगना ही जरूरी नहीं, बल्कि इस छाँव मे छिपे हुए खूबसूरत सफ़र की आहट सुनना भी है..."
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ज़िन्दगी के किसी दौर में जब तुम खुद को अकेले
पाओ, तो खुद को चाँद समझ लेना जो
अकेले ही स्याह रातों को उजियारीत करता है.....
जब मंज़िल दूर लगे और पग पग पर भी ठोकर लगे,
तो खुद को दीवार पर चढ़ती नन्ही चींटी समझ
लेना जो सौ बार फिसलती है पर हिम्मत नही खोती है.......
जब राहों में काँटे ही काँटे हो और मुश्किलों के
पत्थर राह रोकें हो, खुद को वो शिल्पकार
समझ लेना जो पत्थर को तराशकर ईश्वर बना दे.....
जब हो रहा हो मन हताश और विश्वास में न
रहे कोई आस, तब खुद को बच्चा समझ लेना और हर मन को सच्चा समझ लेना.....
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कुछ ऐसी किस्मत वाले होते हैं, कि जिनकी किस्मत होती नहीं.
हँसना भी मना होता है उन्हें, रोने की इज़ाज़त होती नहीं....
बेनाम सा मौसम जीते हैं, बेरंग फ़ज़ा मिल जाती है,
मरने की घड़ी मिलती है अगर, जीने की सजा मिल जाती है.
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लहू लहू है हर इक संग-ए-रहगुज़र हुआ न था यूं मेरे दर्द का सफ़र जानां ये और बात कि तू दिल की धड़कन में तू रहा तलाश फ़िर भी किया तुझको उम्र भर जानां शहर भर ने तो चेहरे का कर्ब देखा है जो दिल पे गुज़री उसकी किसे ख़बर जानां बिछड़ के तुझसे तो लम्हे भी माह-ए-साल हुए ये उम्र कहने को थी कितनी मुख़्तसर जानां
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आँख से मिरी इस लिए लाली नहीं जाती यादों से कोई रात जो ख़ाली नहीं जाती
अब उम्र न मौसम न वो रस्ते कि वो पलटे इस दिल की मग़र ख़ाम ख़याली नहीं जाती
आए कोई आ कर ये तिरे दर्द संभाले हम से तो ये जागीर संभाली नहीं जाती
मांगे तो अगर जान भी हँस के तुझे दे दें
तेरी तो कोई बात भी टाली नहीं जाती
मालूम हमे भी हैं बहुत से तिरे किस्से पर बात तिरी हमसे उछाली नहीं जाती
हमराह तिरे फूल खिलाती थी जो दिल में अब शाम वही दर्द से ख़ाली नहीं जाती
हम जान से जाएंगे तभी बात बनेगी तुमसे तो कोई राह निकाली नहीं जाती
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दो पल की जिंदगी है, आज बचपन, कल जवानी, परसों बुढ़ापा, फिर खत्म कहानी है। चलो हंस कर जिए, चलो खुलकर जिए, फिर ना आने वाली यह रात सुहानी, फिर ना आने वाला यह दिन सुहाना | कल जो बीत गया सो बीत गया, क्यों करते हो आने वाले कल की चिंता, आज और अभी जिओ, दूसरा पल हो ना हो।
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बेटी हूँ तो मिटा दिया
क्या थी मेरी गलती माँ, जो तुनें मुझे मिटा दिया,
अपनी ही हाथों से तुने, आंचल अपना हटा लिया।
देख न पायी मैं तेरी सुरत, कैसी थी माँ तेरी मूरत,
चली गयी मैं यहाँ से रोवत, कैसी थी माँ पापा की सुरत ।
बेटी हुं मै इसी लिये क्या, हाँथ अपना हटा लिया,
क्या थी मेरी गलती माँ, जो तुने मुझे मिटा दिय ।
यह दुनियाँ देखने से पहले, क्यों तुने मुझे सुला दिय
क्य थी मेरी गलती माँ जो इतना बड़ा सजा दिया ।
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ख़ुद को कितना छोटा करना पड़ता है बेटे से समझोता करना पड़ता है
जब औलादें नालायक हो जाती हैं अपने ऊपर गुस्सा करना पड़ता है
सच्चाई को अपनाना आसान नहीं दुनिया भर से झगड़ा करना पड़ता है
जब सारे के सारे ही बेपर्दा हों ऐसे में ख़ुद पर्दा करना पड़ता है
प्यासों की बस्ती में शोले भड़का कर फ़िर पानी को महंगा करना पड़ता है
हँस कर अपने चेहरे की हर सिलवट पर शीशे को शर्मिंदा करना पड़ता है
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जब जन्म लेती है बेटी, खुशियां साथ लाती है बेटी ।
ईश्वर की सौगात है बेटी, सुबह की पहली किरण है बेटी। तारों की शीतल छाया है बेटी, आंगन की चिड़िया है बेटी । त्याग और समर्पण सिखाती है बेटी, नए नए रिश्ते बनाती है बेटी।
जिस भर जाए उजाला लाती है बेटी, बार-बार याद आती है बेटी ।
बेटी की कीमत उनसे पूछो, जिनके पास नहीं है बेटी ।
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मां तो आखिर होती है मां ।। अपने सपनों को त्यागकर, रातों को जागकर हमारी ख्वाहिशें करती हैं पुरी उनके बिना ज़िन्दगी अधूरी, ममतामयी आंचल है जिनकी जैसे गौरी और जानकी । खुशियों की तो यह है मोती, मां की आंखों में करुणा की ज्योति रिश्तों को ये संजोए रखती, सारे दर्द खुद ही सह लेती अपनों पे जब संकट आती है मौत से भी लड़ जाती है। कभी दुर्गा कभी चंडी बन जाती, जब बात अपने बच्चों पर आती है। रब की परछाईं होती है मां, मां तो आखिर होती है मां ॥
Khiladi par Kavita
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अच्छा सफर था सुनाने के लिए, लोग मिलते हैं बिछड़ जाने के लिए,
खुशियाँ ज़िन्दगी बरबाद कर देंगी, एक गम चाहिए दिल बहलाने के लिए,
बेईमानी का बाज़ार इतना ज़ालिम है, होठों को रिश्वत देते हैं मुस्कुराने के लिये,
हर मर्ज की बस यही ही है आखरी इलाज, नया दर्द चाहिए पुराना गम भुलाने के लिए,
खामोशियाँ भी बहुत शोर करती हैं, गुम होना पड़ता है नज़र आने के लिए,
कभी दिन के उजाले रास्ता भटका देते हैं, कभी चराग ही काफी है राह दिखने के लिए,
अख्तर ज़िन्दगी से दुश्मनी महेंगी पड़ी, हर वक़्त तैयात है तुझे आज़माने के लिए !
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बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता
जो बीत गया है वो गुज़र क्यूँ नहीं जाता
सब कुछ तो है क्या ढूँढती रहती हैं निगाहें क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यूँ नहीं जाता
वो एक ही चेहरा तो नहीं सारे जहाँ में जो दूर है वो दिल से उतर क्यूँ नहीं जाता
मैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशा
जाते हैं जिधर सब मैं उधर क्यूँ नहीं जाता
वो ख़्वाब जो बरसों से न चेहरा न बदन है वो ख़्वाब हवाओं में बिखर क्यूँ नहीं जाता
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कभी मोम बन के पिघल गया कभी गिरते गिरते
संभल गया वो बन के लम्हा गुरेज़ का मेरे पास से निकल गया
उसे रोकता भी तो किस तरह के वो शख़्स इतना
अज़ीब था कभी तड़प उठा मेरी आह से कभी अश्क़ से न पिघल सका
सरे राह मिला वो अगर कहीं तो नज़र चुरा के
गुज़र गया वो उतर गया मेरी आँख से मेरे दिल से क्यूँ न उतर सका
वो चला गया जहां छोड़ के मैं वहां से फ़िर न
पलट सका वो संभल गया था 'फ़राज़' मग़र मैं बिखर के न सिमट सका
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चिड़िया घर से निकली है नन्हें पंखों को लिए अपने सपनों की रंगीन दुनिया बनाने।
वो कई दफा लड़खड़ाई चोटें भी खाई पर कोशिशें ना छोड़ी फलक को अपना बनाने की।
चिड़िया घर से निकली है बुलबुले सी हवा संग बहने को चहचहाकर कर फिजाओं में गुनगुनाने को ।
वो भटकी भी कई दफा थोड़ी घबराई भी पर कोशिशें ना छोड़ी फलक को अपना बनाने की
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बात इधर उधर तो बहुत घुमाई जा सकती है
पर सच्चाई भला कब तक छुपाई जा सकती है
खून से बना कर मां बच्चे को जो पिलाती है
उस दूध की कीमत कैसे चुकाई जा सकती है
सहरा की प्यास तो समंदर बुझा सकता है पर
समंदर की प्यास कैसे बुझाई जा सकती है
नहीं हल निकलता गर तोप और बंदूक से
लड़ाई प्यार से भी तो सुलझाई जा सकती है
खींच दी है दिलों में गर दीवार मजहब ने
उसमें कोई खिड़की भी तो बनाई जा सकती है
किसी बेबस पे ज़ुल्म देख गर कुछ कर नहीं
सकते तो शर्म से यह गर्दन तो झुकाई जा सकती है
मुश्किल है लड़ना गर अकेले किसी बुराई से
उसके खिलाफ मुहिम भी तो चलाई जा सकती है
दुनिया भर के वैद्य जब बेबसी से हाथ जोड़ दें
तो दुआ की ताकत भी तो आजमाई जा सकती है
अपनी असलियत तो दौलत से छुपा लेगा कोई
पर औकात भला कब तक छुपाई जा सकती है
राह मुश्किल होती है ज़रा वक़्त लग जाता है
दौलत तो ईमानदारी से भी कमाई जा सकती हैं
चलो मान लिया हमने कि " राज" बेगुनाह है पर
उस पर कोई तोहमत तो लगाई जा सकती है।
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रख सको तो एक निशानी हूं मैं खो दो तो सिर्फ
एक कहानी हूं मैं रोक ना पाए जिसको
ये सारी दुनिया वो एक बूंद आंख का पानी हूं मैं....
सबको प्यार देने की आदत हैं हमें
अपनी अलग पहचान बनाने की आदत हैं
हमें उतना ही ज्यादा मुस्कुराने की आदत हैं मुझे....
कितना भी गहरा जख्म दे कोई
इस अजनबी दुनिया में अकेला ख्वाब हूं मैं
सवालों से खफा छोटा सा जवाब हूं मैं जो
समझ ना सके मुझे उनके लिए कौन
जो समझ गए उनके लिए खुली किताब हूं मैं....
आंख से देखोगे तो खुश पाओगे दिल से पूछोगे तो
दर्द का सैलाब हूं मैं अगर रख सको तो
एक निशानी हूं मैं खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूं मैं....
# कविता
'मैं हूँ थोड़ी अज़ीब सी मैं बादलों से डरती हूँ, बरसात पर मैं मरती हूँ। जब हवाओं के संग उड़ती हूँ, तब भी जमीं से जुड़ के चलती हूँ। मैं हूँ थोड़ी अज़ीब सी, मगर प्यार तुमसे करती हूँ। कभी सागर की चट्टान हूँ, कभी रेत बन किनारों से जा मिलती हूँ। इंद्रधनुष की बेला हूँ, मैं हर घड़ी रंग बदलती हूँ। हाँ, मैं हूँ थोड़ी अज़ीब सी, मगर प्यार तुमसे करती हूँ । बात मुझे सताए, मैं तंग उसी को करती हूँ, कल रूठ गयी थी जिस बात पर, आज पसंद उसी को करती हूँ। हाँ, मैं हूँ थोड़ी अज़ीब सी, मगर प्यार तुमसे करती हूँ। बिन कहे कुछ कहती हूँ, बिन सुने सब समझती हूँ, बात है बस इतनी सी, जो हर बार तुमसे कहती हूँ। हाँ, मैं हूँ थोड़ी अज़ीब सी, मगर प्यार तुमसे करती हूँ ।
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सब कुछ बदल गया... घर आने पर अब ना कोई इंतज़ार करता है ना ही बहार जाने पर किसी का फोन आता है की "कहाँ पहुंचा खाना खा लेना" कहीं पहुंच कर भी अधूरा सा लगता है
सुबह उठने का मन नहीं करता दिल को दिलासा देता हूं शायद एक आवाज़ आयेगी "उठ जा कब तक सोएगा" पर अब माँ की वो आवाज़ कभी सुनाई नहीं देगी!!
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चलो माना कोई रिश्ता नहीं आओ हम बिन रिश्तो के ही साथ चलते
खामोशियां पसंद है ना तुम्हें, ठीक है आओ हम नजरों ही नजरों में बात करते हैं
हम इश्क के अदब- लिहाज निभाते रहे और वो समझते रहे कि हम उनसे डरते हैं
यहां छिछला है सागर शोर ज्यादा है। आओ आज खामोश गहराइयों में उतरते हैं
यहां नहीं है किसी को किसी की परवाह
यहां सब अपने ही उसूल - हिसाब से जिया करते हैं
बड़ी अजीब होती हैं इंसानों की फितरत ये खुदखुशी तक खुद खुशी के लिए करते हैं
ये परिंदे इस देश के नहीं हैं 'राहगीर', मैं जानता हूं इन्हें ये हर साल सफर करते हैं
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मैं हूँ या न रहूँ, मेरा पता रह जाएगा शाख़ पर यदि एक भी पत्ता हरा रह जाएगा
बोरहा हूँ बीज कुछ संवेदनाओं के यहाँ खुश्बुओं का इक अनोखा सिलसिला रह जाएगा
अपने गीतों को सियासत की जुबां से दूर रख पंखुरी के वक्ष में काँटा गड़ा रह जाएगा
मैं भी दरिया हूँ मगर सागर मेरी मन्जिल नहीं मैं भी सागर हो गया तो मेरा क्या रह जाएगा
कल बिखर जाऊँगा हरसू, मैं शबनम की तरह किरणें चुन लेंगी मुझे, जग खोजता रह जाएगा..
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दिल को छू लेने वाली बात
एक दिन हम जुदा हो जायेंगे ना जाने कहाँ खो जायेंगे
तुम लाख पुकारोगे हमको पर लौट कर हम ना आयेंगे
थक हार के दिन के कामों से जब रात को सोने जाओगे
जब देखोगे अपने फोन को पैगाम मेरा ना पाओगे
तब याद तुम्हें हम आयेंगे
पर लौट के ना आ पायेंगे
इक रोज ये रिश्ता छूटेगा फिर कोई न हम से रूठेगा
पर हम ना आँखें खोलेंगे तुम से कभी ना बोलेंगे
आखिर उस दिन तुम रो दोगो ऐ दोस्त तुम मुझे खो दोगे
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ए जिंदगी मुझे अपने तौर तरीके सिखा दें,
ना ज्यादा ना कम, बस जरुरत भर बताते दे
ना पीछे देखने का वक़्त हो, ना आगे बढ़ने की आरजू ये
दुनिया जैसे चलती है, रहना बीच इनके सिखा दे
किसी के होने ना होने का, मुझे एहसास ना
हो बाकी जो तू चाहे, अपने हिसाब से चला दे तू
लोगों से पहले सोचना खुद के लिए शुरु
करूं मुझे कुछ ऐसा पत्थर दिल बना दे
अपनो की कही बात, जो दिल में लगे कभी
ऐसी बातों को भूलने की तरकीब सिखा दे
चाह कर भी किसी का मुझ पर बस ना
चले ऐ जिंदगी तू मुझे बस, अपनी तरह बना ले!
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किसी ने मुझे पूछा, ' कैसे हो तुम? मैंने कहा....
हँसते बहोत है, मुस्कुरातें कम है....
रोते नहीं, बस आँखे नम है
सवाल सी जिंदगी है जवाब नहीं कोई....
शोर तो बहोत है, पर उसकी आवाज नहीं कोई...'
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